अखाड़े में कभी न हारने वाले ‘गामा’ पहलवान, 23 मई को हारे थे जिंदगी की जंग

अखाड़े में कभी न हारने वाले ‘गामा’ पहलवान, 23 मई को हारे थे जिंदगी की जंग

डॉ रिजवान/ कुश्ती के मैदान में बड़े बड़े पहलवानों को धूल चटाने वाले ग़ुलाम मोहम्मद बख़्श उर्फ “गामा पहलवान” ने दुनिया भर में कुश्ती का नाम रौशन किया है, 22 मई 1878 को पंजाब के अमृतसर में जन्मे गामा ने 15 साल की उम्र में जोधपुर की कुश्ती में 450 पहलवानों को हराकर टॉप 10 में जगह बनाई, सबसे ज़्यादा चर्चा में गामा तब आये जब उन्होंने हिंदुस्तान के सबसे बड़े पहलवान ‘रुस्तम ए हिन्द’ रहीम बख्श सुल्तानी को इलाहाबाद की कुश्ती में हराया और “रुस्तम ए हिन्द” का खिताब अपने नाम कर लिया, विदेशों में भी गामा पहलवान का बड़ा नाम था, लन्दन की कुश्ती में गामा पहलवान फ़ाइनल में पहुंचे, जहां उनका मुक़ाबला वर्ल्ड चैंपियन ज़िबिस्को से हुआ, पहला मुक़ाबला टाई होने के बाद दूसरे मुक़ाबले में हार के डर से ज़िबिस्को मैदान में ही नही आए बिना लड़े गामा को 7 सितंबर 1910 को वर्ल्ड चैंपियन घोषित कर दिया गया।

1940 में हैदराबाद निज़ाम के बुलावे पर गामा पहलवान कुश्ती के लिए हैदराबाद गए, करीब 60 साल की उम्र में भी एक एक कर के निज़ाम के सारे पहलवानों को हरा दिया, आखिर में निज़ाम ने अपने सबसे अच्छे युवा पहलवान हीरामन यादव को भेजा, दोनो की बीच मुक़ाबला काफी देर तक चला कोई नतीजा नहीं निकला मुक़ाबला बराबरी पर खत्म हुआ गामा पहलवान की ये आखरी बड़ी कुश्ती थी, बड़े जिस्म ही नहीं बड़े दिल वाले गामा पहलवान 23 मई 1960 को जिंदगी की जंग हार गए।

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